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नदी — एक काव्य

जेसे ये पूरी दुनिया मुझे बता रही है,  कि ना आया मैं यहां कुछ पाने, खोने की रट लगाई है,  समुद्र में जाने के लिए, जैसे  नदिया स्थान छोड़ती हुई,  मुझे भी बता दो ऐ साथी,  कैसे छोड़ दू,  कैसे ये आस लगाए बैठु,  कि मिल जाऊंगा महासागर में तुम्हारी भाती,  कि नहीं बन जाऊंगा  एक छोटा सा तालाब,  जिस में कोई मोजे की दौड़ नहीं,  कोई अंदर उठा तूफ़ान नहीं,  कोई गहराइयां नहीं,  क्या है राज, तुम्हारे साथ  जो, कभी ना रुकने की  कला जानती हो? By Ronak Solanki