पहली नज़र में तो ये दोनों एक जैसे ही लगते है पर इन दोनों शब्दो में ज़मीन आसमान का फर्क है। हा, दोनों ही शब्द थोड़े बहुत भावनाओ में एक जैसे है पर फिर भी दोनों का अपना एक महत्व है।
पहला तो यही की मोटिवेशन आता है कुछ पाने के लिए या कुछ कर दिखाने के लिए जहाँ आध्यात्मिक विचारधारा कुछ पाने को नहीं अपितु जिसे छोड़ा नहीं जा सकता उससे जुड़ने की बात करती है। हमने योग का नाम सुना ही होगा पर क्या आपको पता है योग का मतलब क्या है? योग का सही अनुवाद ही है जुड़ना पर किसे ? जिसको छोड़ा नहीं जा सकता यानि खुद से या ये भी कह सकते है की परमात्मा से क्यों की आध्यात्मिक विचारधारा का यही मानना है की हम परमात्मा से या खुद से अलग नहीं है पर कुछ पाने की दौड़ ही हमें उनसे अलग कर देती है तो दोनों के हेतु ही अलग अलग हो गए.
मोटिवेशन हमेशा नहीं रह सकता अगर आप कुछ सुन के या कुछ देख, या पढ़ के मोटीवेट हो भी गए तो वो ज़्यादा समय तक नहीं टिक सकता। हा, मोटिवेशन जल्दी आ जाता है कही पे कुछ पढ़ लिया या सुन लिया मन कुछ कर दिखाने को उत्सुक हो जाता है। पर आध्यात्मिकता में इसे बिलकुल विरीत विपरीत स्थिति है यहाँ पर ज्ञान या सच्ची भक्ति लगने में भले है देर लगे पर एक बार जो ज्ञान और भक्ति आ गई ज़िंदगीभर रह जाती है और अगर श्रीमद भगवदगीता का कथन देखे तो अध्याय ६ और ४० से लेकर ४६ वे श्लोक में श्री कृष्णा कहते है की परमात्मा प्राप्ति के मार्ग पर चलने वाले कभी उस मार्ग से चलित नहीं होते।
मोटिवेशन का जो फल है और जो उस फल की खुशी है कभी भी सदा के लिए नहीं हो सकती मतलब अगर मोटिवेशन से कुछ पा भी लिया तो भी वो सास्वत नहीं है। आपका अपना अनुभव होगा की कुछ पाने के बाद की खुशी १ या दो हफ्ते तक चल सकती है पर आध्यात्मिकता में कभी अलग न होने वाले से जुड़ ने के बाद केसा अलग होने का दुःख क्या कोई खुद को छोड़ सकता है ? यहाँ ये ध्यान देने की बात है की हमारे पुराणों में आत्मा को हमेशा से ही आनंदस्वरूप बताया गया है। रमन महर्षि ने अपनी पुस्तक में कौन हु ? में कहा है की हमें जो भी सुख महसूस होता है वो सुख कुछ प्राप्त करने से नहीं पर कुछ प्राप्ति की तड़प मिटने से होती है यानि निर्संकल्प अवस्था ही सुख है। और ऐसी अवस्था कुछ पाने से मिले तो मन दूसरा संकल्प करेगा पर संकल्प मिटने से वही सुख सास्वत यानि पर्मनंट हो जाता है। यही कारन है की आध्यात्मिक आननद सदा के लिए रहता है।
इन दोनों विचारधारा के अपने महत्व है जीवन में दोनों कही महत्व बराबर है। आज की ये बात चित यहाँ पर ही खतम करता हु फिर मिलते है।
जय श्री कृष्णा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें