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भगवद गीता की सीख - 1


मुझे आज भी याद जब में तक़रीबन १४ साल का था तब मेने भगवद गीता पहली बार हाथ में ली।  हा कुछ खास कारण नहीं था पर बचपन से सुन ते आ रहा था की भगवद गीता में सारे वेदो का ज्ञान है, गीता को पढ़ने से सब की ज़िंदगी बदल जाती है, यहाँ तक की जो भी  कोई भारत का विचारक रहा हो उसने हमेशा इस ग्रंथ प्रसंशा की है।  तो बचपन से पढ़ने का सोख, बहुत कुछ पढ़ लिया तो ये कैसे छोड़ सकता था। भगवद गीता ने मेरे विचारो पर , मेरे जीवन के सिंद्धातो पर , मेरी पसंदगीओ पर बहुत गहरा असर डाला है।  तो में आज कुछ ऐसी सीखो  की बारे में बात करूँगा जो मुझे भगवद गीता से मिली। 


तो मॉर्डन ज़माना है इस  मॉर्डन ज़माने के कई धारणाए है , यहाँ धरना का मतलब ये ले रहा हु की की आज का समाज किन किन चीज़ो को महान गिनता है जैसे की गाड़ी , बांग्ला हो, आई फ़ोन , social media पे followers हो तो उसने life  में फोड़ दिया कोई  ऐसी चीज़ न रही जिसके उसमे कमी हो।  ये तो सिर्फ उदहारण है पर जो भी चीज़ हम पर थोपी जाती है की इसे ही cool  कहलाओगे वो चीज़ है धारणा। सवाल हो सकता है मेने इस के लिए धारणा सब्द का ही को प्रयोग किया तो ये सारी  चीज़े हमने खुद  से नहीं खोजी , की  हमें इनसे मजा मिलता है और हम इसके पीछे पड़े है ,  ये थोपी गई है advertismet के द्वारा movies  के द्वारा तथा कथित social media influencer के द्वारा। जरा सोचो अगर ये पीढ़ी इतनी ही समझदार है तो दारू क्यों पियेगी , सिगरेट क्यों फुकेगी , पैसे न होते हुए भी लोन से  महंगे फ़ोन , बाइक क्यों लेगी ? क्यों की उन के मन में थोप दिया गया की जीवन का सारा सुख इसी में है। कारण सिर्फ दिखावा नहीं है पर उन की मन की सोच है जो की बोई गई है कुछ marketing specialist  के द्वारा।  मेरा इस विषय को लाने का कारण ये नहीं के में उन लोगो को गालिया दु  जो बिचारे marketing strategy की शिकार हो गए सही शिक्षा न मिलने के कारण। वो सही शिक्षा जो मुझे भगवद गीता ने दी।  हा , कोई ऐसा श्लोक मेरे पास नहीं है की किस श्लोक ने मुझे ये शिक्षा दी , क्यों की अर्जुन विषाद में है की उस के लिए क्या सही है क्या गलत और जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है , अर्जुन क्या निर्णय ले युद्ध लड़े या भाग जाये , हम क्या करे उस धारणाओं से लड़े जो थोपी गई है या अपनी हार स्वीकार कर उन चीज़ो के गुलाम बन जाये। और ये सही गलत का फैसला लेने की शिक्षा भगवद गीता ही दे सकती है।  में इस विषय में विस्तार से चर्चा करना चाहूंगा पर फिर कभी क्यों की में विषय से भटकना नहीं चाहता।  😅 


युद्ध जरुरी है पर क्या युद्ध की हार जीत  पर रोना ठीक है ? बचपन से सीखा दिया जाता है ज़िंदगी में कुछ प्राप्त करो अगर तुम कुछ प्राप्त कर लोगे तो महान बन जाओगे , उदहारण रखे जाते है इसने ये प्राप्त किया उसने वो प्राप्त किया , मन में बचपन से ही गाँठ बांध के दी की अगर तुम ने ये कर लिया तो सुखी नहीं तो दुःख ही दुःख। सत्य क्या है ? बचपन याद  करो कुछ चाहिए उसके लिए रो ते थे। और जब वो चीज में जाए तो? खुशी तो होती थी पर कितने वक्त के लिए? एक इच्छा पूरी हुई उसकी खुशी टिकी भी नही और मन ने दूसरी इच्छा प्रकट कर दी। और दौड़ ते रहे दौड़ ते रहे। और ये संसार भी तो इसी को महत्व देता है। ये पा लो तो सुखी वो पा लो तो सुखी। लोग बूढ़े हो जाते है तब जान पाते है की ये दौड़ कभी खत्म नहीं होने वाली। जो लोग जिंदगी खत्म होने पर जानते ही वही बात से भगवद गीता में श्री कृष्णा के उपदेश की सरुआत होती है।



कुछ भी कर लो ये संसार आत्मा को सुख देने के लिए अयोग्य है, शरीर को भले ही संसार सुख दे पर आत्मा इन चीज़ो से कभी सुखी नहीं हो सकती । ये ज्ञान होने पर सच्चे सुख की तलास स्वभावतः  आती है और जब सच्चे सुख की तलास हो तब रुचि बैठती है गीता में , उपनिषद में। स्वामी विवेकानंद ऐसा क्यों कहते थे की मुझे १०० नचिकेता दे दो विश्व बदल दूंगा। नचिकेत में ऐसा क्या था ? यमराज ने कितने ही प्रलोभन दिए पर उसने उन सब को नकार कर आत्माज्ञान , ब्रह्मज्ञान को चुना क्यों ? क्यों की ये समझ थी की सब नश्वर है। यह कई लोग ये दलील देने लगते है कि अगर सब ने ऐसा मन लिया की संसार में कुछ नही रखा तो सब काम करना ही छोड़ देंगे, कुछ पाने की दौड़ को ही बंध कर देंगे। तो मेरा उनसे प्रश्न है की श्री कृष्णा को तो अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार करना था तो इस बात से अर्जुन को युद्ध छोड़ कर सन्यास ले लेना चाहिए पर इसे उल्टा क्यों हुआ? चीज़े सुन में और जान लेने में जमीन आसमा का अंतर है सुन लेने से यही लगे गा की ये तो काम करने का कारण मिटा ने का रास्ता है पर जब ये जान लोगे तो अर्जुन की तरह युद्ध में फिर खड़े होने का साहस स्वतः आ जायेगा। क्यों की युद्ध धर्म है तो करना कर्तव्य है पर युद्ध में इस अपेक्षा से लड़ना की जीतेंगे या इस डर से लड़ना की हार  जायेंगे तो आगे जा के खुद का ही बुरा करेंगे। केसे? वो भगवान से बेहतर में नहीं समझा सकता गीता पढ़नी होगी।

भगवान केसे है? क्या है? और उनको केसे जाना जाता है? वो भगवान से बेहतर कोन समझा सकता है? गीता से न सिर्फ ये जान ने को मिलता है कि भगवान कैसे है पर ये भी जान ने को मिलता है की आत्मा और परमात्मा का संबंध क्या है केसा है? कुछ लोग है जो ये मान के बैठे रहते है की भगवान हे ही नहीं और कुछ नही करते , और जो लोग है वो मान ते है भगवान है और कुछ नही करते। इनमें से किसी को ये जान ने की इच्छा नहीं की भगवान कैसे है। आस्तिक हो या नास्तिक अगर एक बार ये जान ले की भगवान क्या है फिर सब जो जूठी मान्यताएं है सब निकल जाती है। 

एक ब्लॉग में सब भगवद गीता की सीख कहना असंभव है। फिर भी बात करेंगे। अभी की लिए इतना ही।

जय श्री कृष्णा।



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