गर्मियों का मौसम है और आज शनिवार का दिन यानि आधी छुट्टी , तो इस दिन विवेक,समीर और विनीत ने तय किया की आज समीर के खेत में जा के मस्त आम खाएंगे। ११.३० का बेल बजते है तीनो चल पड़े समीर के खेत की तरफ। तीनों ने पहुँच कर अपने थैले रख कर चल देते है आम खाने। विनीत को प्यास लगी थी तो वो पानी पेनी गया तभी समीर विवेक से कहता है
समीर- ''इस पेड़ की उस टहनी को देखो दिख तो मजबूत रही है ! पर हे नहीं ''
(विवेक देख के हामी भरता है। )
समीर आगे कहता है'' क्यों न हम विनीत को इस टहनी पर उक्शा के चढ़ाये। (एक शरारती हास्य )
समीर के ये कहने के बाद विवेक टहनी के निचे वाली जगह देख के कुछ बोलने ही वाला था की विनीत आ जाता है।
समीर -'' विनीत ये देखो में ये दो आम पेड़ से उतार के लाया और विवेक ये दो आम उतार के लाया अब तुम्हारी बारी है वो एक वहां मस्त ऍम देख रहे हो बस वो उतार लो फिर हम मिलके खायेंगे। ''
विनीत ठीक है का इशारा कर के पेड़ पे चढ़ता है।
विवेक -'' विनीत उस टहनी पर मत जाओ वो काफी नरम है और समीर में जनता हु तुम मजे के लिए ये कर रहे हो पर वो टहनी बहुत ऊपर है अगर विनीत वहाँ से गिरेगा तो बहुत लग सकती है। ''
समीर को ये बात समझ में आ जाती है।
समीर - ''हा ! विनीत चलो निचे उतरो हम यही आम खाते है। ''
तीनो पेड़ के निचे आम खाने के लिए बैठते है।
विनीत मस्ती में बोलता है -'' समीर ! आज तो तुम मुझे मरवा ही देते। (हास्य के साथ )
समीर भी मस्ती में जवाब देता है -'' हा! अगर विवेक न बोलता तो। सही तो कहावत है घर का भेदी लंका ढाये।
दोनों हॅसते है। विवेक इस कहावत की उलजन में पड़ा था।
विवेक कुछ बोलने ही वाला था की
विनीत -"पर इस कहावत का मतलब क्या है ?''
समीर -"अरे रामायण नहीं देखी क्या ? विभीषण रावण का भाई था। उसने अपने भाई और राज्य के बारे में न सोच कर जा के भाई के दुश्मन का साथ दिया और रावण के नाभि में तीर मार ने का सुझाव भी उसने दिया अगर उसुने राम जी का साथ नहीं दिया होता तो राम जी जीतते ही नहीं। इस लिए ये कहावत बनी की घर का भेदी लंका ढाये। ''
विवेक सोच में ही था और उसने जैसे ही इस विचार को सोचते हुए गहन सोच में पड़ा पता नहीं कैसे उसकी आँखों मे से एक व्यक्ति निकल ता है।
तीनो हैरान है।
विनीत : अरे विवेक ये क्या किया तूने।
विवेक : मेने कुछ नहीं किया।
समीर : अरे विभीषण आ गया क्या ?
विनीत : विभीषण जी! विभीषण जी! सॉरी
तीनो भागने की तैयारी करते है तभी
''अरे !डरो नहीं में कोई विभीषण नहीं हु।
विनीत - '' तो क्या हुआ ? कोई आँखों से निकल ता है क्या ?
समीर - ''भाई ! मुझे तो यह भूत ही लगता है जो विवेक में घुस गया था कही अपने अंदर घुस न जाये भाग ! अरे विवेक खड़ा क्या है भाग ''
'' वो नहीं डरेगा तुम्हारी तरह क्यों की में विवेक मे से निकला हु और में कोई भुत और विभीषण नहीं हु में सत्यद्रष्टा हु।
विनीत - "बोल तो ऐसे रहा है की अवेंजर्स का एक हिस्सा रहा हो। ''
सत्यद्रष्टा हसने लगता है।
पर रुको तो सही रुको गए तो जानोगे की में कौन हु और क्या कर सकता हु।
समीर -"क्या कर सकता हु। सुपरमेन की तरह उड़ोगे या डोरेमोन के तरह ज़िंदगी सवारोंगे हमारी !''
चारो हसने लगते है।
सत्यद्रष्टा जी - '' जिसे की मेरा नाम है में सब को सत्य दिखाता हु।
समीर -'' स्पोइलर अलर्ट ! अब ये साबित कर देंगे की विभीषण निर्दोष था। अरे वो केसा निर्दोष उस की वजह से तो उसका पूरा ख़ानदान मर गया कुछ नहीं। कुछ नहीं करता तो भी चल जाता पर भाई के दुश्मन का साथ दिया। क्या ये ठीक है ?
सत्यद्रष्टा-''में कुछ साबित करने नहीं आया। पर हा में ये ज़रूर कहूंगा तुम जैसे जिस द्रष्टि से जिस चीज़ को देखते हो इस पर ये डिपेंड होता है की तुम किसी चीज़ के बारे में क्या सोचते हो''
विनीत - '' थोड़ा समझ में आये ऐसी भाषा में बोलो।
सत्यद्रष्टा-'' तुम अगर श्री राम के भक्त हो तो तुम्हे विभीषण में कोई दोष नहीं दिखेंगा की उसने अपने भाई का साथ नहीं दिया। पर अगर तुम रावण भक्त हो तो तुम विभीषण को गालिया ही दोगे। तुम किसकी द्रष्टि से यानि कि किस पॉइंट ऑफ़ व्यू से देखते हो उस पर है की तुम विभीषण को क्या मानते हो। ''
विनीत - '' थोड़ा क्लियर तो हुआ पर चलो ठीक है। चलो बाय इतना कहने के लिए कोई किसी की आंख से निकल ता है क्या। ''
सत्यद्रष्टा-'' अरे तुम मुझे बताने दोगे तब तो में ये बता सकूंगा की में क्या कर सकता हु। ''
विवेक -'' तो बताओ जी !आप क्या कर सकते हो। ''
सत्यद्रष्टा-''आत्मा शरीर नहीं है। आत्मा इस शरीर की , मन की ,चित की साक्षी है , में तुम्हारी आत्मा को किसी शरीर में जो भुतकाल में हो गए हो उस में ले जा के ये दिखा और महसूस करा सकता हु की उनपर क्या बीती थी। यानि की तुम उनको जी सकोगे। पर बस थोड़े थोड़े समय के लिए। ''
विवेक -'' यानि की तुम हमें ये नहीं बताओगे की क्या हुआ था पर ये विभीषण जी की द्रष्टि से दिखाओगे ताकि हम खुद तय कर सके की वो गलत थे या सही। ''
सत्यद्रष्टा-'' बिलकुल सही। बाद में तुम खुद तय करना। ठीक है मिस्टर स्पोइलर अलर्ट ?
तीनो हस्ते है।
चलो चलो हमें जल्दी ले चलो। - विनीत उत्साहित हो कर।
सत्यद्रष्टा-''कहा ?''
विनीत के पास कोई शब्द नहीं था इस के लिए।
सत्यद्रष्टा-'' मेने इस का नाम Spiritory रखा है। स्पिरिट का मतलब है चेतना या आत्मा भी कह सकते है और रह गया उसका Story तो तुम इसे स्टोरी जैसे ही दिखोगे। इस लिए मेने इसके नाम spiritory रखा।
तीनो -'' तो चलो spiritory में। (तीनों उत्साहित हो कर। )
भाग १ समाप्त।
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