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आधुनिक शिक्षण व्यवस्था और गुरुकुल व्यवस्था में क्या अंतर है ?




एक समय था जब भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था। सब लोग कार्य में भी कुशल और बुद्धि में भी कुशल थे शायद भारत ही एक ऐसा देश था जहा पे कार्य और बुद्धि दोनों की  कुशलता का समन्वय होता था क्यों की आमतौर पर देखा जाता है जहाँ पर कार्य की कुशलता हो वह बुद्धि की कुशलता नहीं होती और जहा बुद्धि की कुशलता हो वहा कार्य में कुशलता नहीं होती। भारत में इस का समन्वय क्यों हुआ था जवाब सिर्फ एक ही है उस वक़्त की शिक्षा व्यवस्था यानि गुरुकुल। आज हम चर्चा करेंगे की क्यों आधुनिक शिक्षण व्यवस्था युवा को सक्षम बनाने में विफल रही है और इस बारे में भी चर्चा करेंगे की कैसे हम अपनी गुरुकुल की कई बातो को लागु कर के  इस विफलता को सुधार सकते है।

आज भारत देश के पास कई समस्याए है ग़रीबी ,बेरोज़गारी , जिसको दूर करने के कई प्रयास हुए है और हो रहे है पर  क्या हम सफल हुए है ? भारत में हर  100 मे से 65 लोग युवा है वो जो देश को आगे बढ़ाने की शक्ति रखते  है पर फिर भी आज भारत देश इसका सदुपयोग नहीं कर पाया क्योंकी युवा तो है पर skilled नहीं है ऐसा नहीं है की पढ़े नहीं है पढ़े लिखे भी unskilled युवा भारत में दिख जायेंगे। खुल के बोलू तो unskilled युवा होना युवाओ की गलती नहीं है पर युवाओ ने अपने जिंदगी की 14 से 15 साल शिक्षण को दिया पर शिक्षण व्यवस्था उनको सही ढंग से शिक्षा देने में नाकामयाब रही। तो कोनसी ऐसी बाते है जो आज की शिक्षण प्रणाली में नहीं है ?

1 .खुदको जानना -

शिक्षण कभी सिर्फ skilled बनाने के लिए नहीं होता ये विचार हमेशा से भारतीय संस्कृति में रहा है तपोवन में जब शिष्य 14 वर्ष गुरु के साथ बीतता तो वो जीवन  जीने का तरीका सीखता खुदको जानता वो किसमें अच्छा कर सकता है इसका जवाब ढूंढ लेता और उसमे आगे बढ़ कर खुद का भी विकास करता और समाज का  भी। पर आज तो अलग ही दौड़ लगी है जिसमें ज़्यादा कमाई मिले उसमे घुस जाओ और जब उसमे कुछ कर न पाओ तो खुद को losser  समझ  के बैठ जाओ क्योंकी समाज capitalist है अगर पैसा नहीं है तो तुम बत्तर जिंदगी जी रहे हो ये थोपा गया है समाज के ऊपर क्योंकी आज की शिक्षण व्यवस्था यही तो सिखाती है। 

पैसा कामना गलत नहीं है पर पैसों से शिक्षण को आंकना गलत ही नहीं अपितु विद्या का अपमान है। 

 शिक्षण की श्रेष्टता उससे होने वाले मानसिक और बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास में टिकी है  इस लिए तो श्री कृष्णा आत्मज्ञान को सभी विद्याओ का राजा कहते है क्यों की , हो सकता है की कोई साधु बन के झोपड़ी में रहे या राजा हो के महल में पर उसके अंदर जो इस ज्ञान से उचाई आएगी वो न सिर्फ उसको सही मार्ग पे चलाएगी पर उसके परिवार और समाज को भी सही रास्ते पे पोहचायेगी। क्या आज की शिक्षण प्रणाली में ऐसा ज्ञान है ? 

2 . योगिक क्रियाओ की अवगणना 

योग में बुद्धि के विकास ले लिए बहुत सारे प्रयोग दिए गए है जैसे की प्राणायाम और त्राटक। आज की शिक्षण व्यवस्था चाहती तो है सब की बुद्धि विकसित हो पर बुद्धि विकसित करने की कोई तरकीब नही अपनाती ।

3. हस्ते खेलते सीखना –

गुरुकुल एक ऐसी व्यवस्था रही है जहां पर शिष्य को गुरु हस्ते खेलते , काम करते  ज्ञान की बाते करते थे और ऐसी बाते और ज्ञान याद भी रह जाता था पर आज अलग से टाइम रख के पढ़ाया जाता है और अगर शिक्षक १० मिनिट भी ज्यादा क्लास ले तो बच्चो का मुंह भी देखनें लायक हो जाता है क्योंकि जब की ज्ञान बातें बिना पता चले दी जाये  तो याद रह जाती है। 

४. सरकार संचालित शिक्षण व्यवस्था -

ये मेरे ख्याल से सब से महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसकी सिख आज की शिक्षण व्यवस्था को गुरकुल व्यवस्था से लेनी  चाहिए।  गुरुकुल व्यवस्था में शिष्य को  क्या सीखना और कैसे सीखना चाहिए ये कोई राजा या उनका राज्य तय नहीं करता था पर गुरु तय करता था शिष्य को क्या और कैसे सीखना है। राजा के बेटे को भी वही पढ़ना पड़ता था। पर आज की शिक्षण व्यवस्था में सिलेबस सरकारे तय करती है। और जब ऐसा होता है तो शिक्षक  को विषय में रूचि ना हो फिर भी पढ़ना पड़ता है और ऐसे में विद्यार्थी का विकास नहीं हो सकता। ज्ञान देना गुरु का स्वभाव होता था पर आज तो कई ऐसे भी शिक्षक है जो सिर्फ पैसो के लिए शिक्षक बने है। 

आज हमने  आधुनिक शिक्षण व्यवस्था और गुरुकुल में क्या अंतर है ये जाना आगे ब्लॉग  ये जानेगे की ये अंतर को दूर करके एक आदर्श शिक्षण व्यवस्था कैसे बन सकती है।  फिर मिलेंगे। 

तब तक के लिए जानिए  मोटिवेशन और आध्यात्मिकता में क्या अंतर है। मेरे इस ब्लॉग में 

हरी ॐ 


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